दुर्ग निगम में कौन खेल रहा है १५ परसेंट का खेल?,,, कद्दू तो कट रहा है लेकिन बंट नहीं रहा है

नरेश सोनी
दुर्ग। स्थानीय नगर निगम में भ्रष्टाचार पूरी पराकाष्ठा पर है। टेंडर लेने और देने का खेल जोर-शोर से चल रहा है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है, इसलिए विकास कार्यों के लिए पैसों की कमी नहीं है, लेकिन विकास की आड़ में कई नेता और अफसर जिस तरह से भ्रष्टाचार का खुला खेल रहे हैं, उससे खुद कांग्रेस के ही लोग न केवल शर्मिंदा है, अपितु चिंतित भी है। क्योंकि दुर्ग निगम में कांग्रेस की सत्ता है, इसलिए ज्यादातर ठेकेदार भी कांग्रेस से ही जुड़े हुए हैं। इन कांग्रेसी ठेकेदारों को यह बात बेहद परेशान कर रही है कि आखिर अन्य ठेकेदारों की ही तरह उनके साथ भी १५ से १८ परसेंट का खेल क्यों खेला जा रहा है?
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो नगर निगम की वर्तमान सत्ता ठेकेदारों से कुल १५ से १८ परसेंट तक वसूल रही है। टेंडर हो जाने के बाद ठेकेदार से सबसे पहले ३ परसेंट सेंशन एमाउंट लिया जाता है। यह ३ परसेंट सीधे नगर निगम के कुछ प्रमुख लोगों की जेब में जाता है। इसके बाद ठेकेदार को समय-समय पर होने वाले भुगतान में से पदासीन नेताओं और अफसरों को ओहदे के हिसाब से राशि देनी होती है। एक कांग्रेसी ठेकेदार के मुताबिक, १५ साल बाद कांग्रेस की प्रदेश में सत्ता आई और २० साल बाद नगर निगम में कांग्रेस को बैठने का अवसर मिला, लेकिन काम के मामले में अब भी वही पुराना रवैय्या बरकरार है। इस ठेकेदार का कहना था,- भाजपा के शासनकाल में बड़ी मिन्नतों के बाद काम मिलता था, क्योंकि तब ज्यादातर ठेकेदार भाजपा के ही होते थे। लेकिन निगम में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद भी कांग्रेस के लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है। पहले की ही तरह ऊपर से लेकर नीचे तक के लोगों को रूपए बांटने पड़ रहे हैं। जब तमाम व्यवस्थाएं पहले की ही तरह चल रही है तो हम कांग्रेस या विधायक के प्रति वफादार क्यों रहें?
इस संवाददाता ने जब कमीशन के खेल के बारे में पतासाजी की तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आई। राजनीति में सुचिता की दुहाई देने वाले कई प्रमुख नेताओं और अफसरों को प्रत्येक ठेके पर बंधी-बुंधाई राशि मिल जाती है। हर महीने दर्जनों टेंडर होते हैं और इन टेंडरों को बांटकर कई लोग बैठे-ठाले लाखों रूपए हर महीने कमा रहे हैं। कुछ प्रमुख लोगों से बात करने पर बताया गया कि कमीशन की इस राशि के कई भागीदार हैं। लेकिन एमआईसी के कम से कम ४ सदस्यों ने किसी तरह का कमीशन मिलने से साफ तौर पर इनकार कर दिया। इन एमआईसी सदस्यों का कहना था,- ऊपर के लोगों से बचे तो उन तक कुछ पहुंचे। एक एमआईसी सदस्य ने तो अपने ही विभाग के कार्यों में पूछपरख नहीं होने का आरोप लगाया।
नगर निगम के एक जिम्मेदार कांग्रेसी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा,- निगम की पूर्ववर्ती सत्ता तो ठेकेदारों से २५ से ३० फीसदी तक वसूलती थी। यदि हम १५-१८ परसेंट ले रहे हैं तो बुराई क्या है? एक अन्य नेता ने साफ कहना था,- ठेकेदार कौन से दूध के धुले नहीं हैं। उनकी कोशिश होती है कि प्रत्येक टेंडर से ज्यादा से ज्यादा माल बना लें। उक्त नेता का कहना था,- इसे कमीशनबाजी और वसूली कहना उचित नहीं है। यह दरअसल एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। ठेकेदार भी खुश.., अफसर भी और नेता भी। आखिर नेता भी तो लाखों रूपए खर्च कर नगर निगम में पहुंचे हैं।
कद्दू कटेगा पर सबको नहीं बँटेगा
एक चलताऊ कहावत है कि कद्दू कटेगा तो सबको बँटेगा। लेकिन इधर, नगर निगम में इस कहावत के निहितार्थ कुछ और ही है। यहां कमीशन रूपी कद्दू कट तो रहा है, लेकिन सबको नहीं बँट रहा। इस संवाददाता को पर्याप्त जानकारी है कि नगर निगम की सत्ता में बैठे किस व्यक्ति को कितना कमीशन मिल रहा है। कि किस अफसर की जेब में कितने रूपए आ रहे हैं। बहरहाल, इस कमीशनबाजी के चलते पूरे शहर में कांग्रेस के लोगों की जमकर किरकिरी हो रही है। एक ओर जहां स्थानीय कांग्रेसी विधायक ने जोर शोर से चुनाव की तैयारियां प्रारम्भ कर दी है तो दूसरी ओर उनकी वरदहस्ती में सत्तासीन नगर निगम में खुलेआम चल रहे कमीशनबाजी का खेल बदनामी का सबब बन रहा है।
(अगले अंक में : एक बड़े नेता के घर से चल रहा टेंडर बाँटने का खेल….। उक्त नेता के बेटे दूसरों के कंधों पर बंदूक रखकर कर रहे मोटी कमाई। नेता-पुत्र के दफ्तर में तैयार हो रहे है कमाई के नए-नए तरीके।)